घुमने के लिए जरुरी नहीं है कि पहले प्लान बनाया जाये या तैयारी की जाये । अक्सर हमारे आसपास ही बहुत ऐसी जगह है जो घुमक्कड़ी के लिए सर्वश्रेष्ठ है पर हम उनकी तरफ इतना ध्यान नही देते । एक घुमक्कड़ के सोचने का तरीका बिल्कुल अलग होता हैं। उसके लिए सारी जगह अच्छी होती हैं। चाहे वह कोई पर्यटन स्थल हो या कोई अनछुई जगह ....घुमक्कड़ी को शब्द या किसी लेख मे लिखा ही नही जा सकता उसे तो बस महसूस किया जा सकता है ।
अब दिल्ली वालो के लिए लाल किला, इंडिया गेट,कुतुबमीनार उतने मायने नहीं रखते जितने कि दिल्ली से बाहर रहने वाले के लिए रखते है पहाड़ों पर भी यही नियम लागू होता हैं। मेरा मानना है कि घुमक्कड़ी की शुरुआत यही हमारे आस-पास से होती हैं और फिर पहुचते-2 दुसरे शहरों, राज्यों ,देशों तक पहुंच जाती है। शायद ये मेरी शुरुआत है या बस कुछ नहीं।
अरे.... न... न..... नही..... ये आपके लिए नही था ये तो युहीं मन की बाते थी अब मन पे किसी का काबू थोड़े है। ये तो सोचता ही रहता है इसका काम ही सोचना है।
हम मुद्दे पर आते है तो हुआ कुछ यूं कि मै फेसबुक पर काफी मित्रों, लेखकों, घुमक्कड गुरुजनो को फोलो करता हूँ।उनकी पोस्टो को पढता रहता हूँ।एक दिन पोस्ट आई सरस्वती नदी के ऊपर ।उसमें नदी के उद्गम और लुप्त होने के बारे मे बताया गया था।
जोकि उत्तराखंड मे भारत के अतिम गाँव माणा से कुछ आगे था शायद आप मे से भी ज्यादातर ने इस स्थल के बारे मे सुना हो और कुछ ने देखा भी होगा। पर ये पोस्ट मेरे लिए चौकाने वाली थी। क्योंकि मेरे जिले मे भी सरस्वती नदी से जुडा पौराणिक स्थल आदिबद्री (जिला-यमुनानगर) है। जिसके बारे मे हम बचपन से सुनते आये है कि यही से सरस्वती नदी निकलती है। काफी चर्चा हुई नदी के उद्गम को लेकर ।.. काफी नई बातें पल्ले पडी और कुछ जो मेरे पास थी वो उनकों बताई । आजतक मैंने इस स्थल को उस नजरिए से नही देखा था जिस तरह के भाव अब मन मे आ रहे थे। बस बार-2 मन मे यही आ रहा था कि अभी वहाँ चला जाउं और आदिबद्री के इतिहास का पता लगाऊं और सब को इससे बारे मे बताऊ. वहां जाकर एक -2 जगह देखूँ मन बिल्कुल खोजी बन गया था।ये सोचते -2 और आदिबद्री का मैप देखते देखते पता नही कब नीदं आ गई। सोने से पहले मै हर रोज फोन को चार्जिंग पर लगा देता था पर आज तो नींद ने इतना समय ही नही दिया।
जब सुबह आखँ खुली तो 8 बज रहे थे। मलतब रोज कि तरह आज भी मैं लेट ऊठा था। जल्दी जल्दी नहाया और मदिंर चला गया । मेरा गाँव छोटा सा है। मदिंर मे जाकर देखा तो मदिर मे गाँव के काफी लडके इकठ्ठे हो रहे थे। वे सब हरिद्वार जाने के लिए तैयार कर रहे थे। सावन का महीना है तो हरिद्वार से कावड लाई जाती है डाक-कावड.... बीस तीस आदमी या सौ युवाओं तक के ग्रुप इकठ्ठे होकर जाते है और डाक-कावड लाते है मतलब एक बार हरिद्वार से गंगा जल भरकर चल दिये तो रास्ते मे कही भी नही रुकते गाँव आकर महाशिवरात्रि के समय शिवलिंग का गंगा जल से अभिषेक किया जाता हैं। तब ये यात्रा रुकती है। तभी इसे डाक-कावड का नाम दिया गया है। वैसे नोन-स्टोप भी कहा जा सकता है।
हरियाणा ,उतरप्रदेश, पंजाब, राजस्थान मे डाक-कावड काफी प्रचलित है। मै कभी इस तरह की यात्रा मे कभी नही गया हूँ। न मन ही करता है हा अकेले या बहुत छोटे ग्रुप मे जरुर मजा आता है। मदिंर भी घरवालो की डाट सुनकर आना पडता है। नही... नही .. जी मैं नास्तिक नही हूँ। पर नही मन करता तो नही आता मन करता है तो आ जाता हूँ मागता भी कुछ नही हूँ। पर सुबह मदिंर आकर दिन की शुरुआत अच्छी होती है। मदिंर आकर पता चला कि इस यात्रा मे मेरा सहपाठी दीपक भी जा रहा है मतलब आज मुझे अकेले को ही कोचिंग सैंटर जाना होगा दरअसल हम दोनों ही कंपटीशन एग्जाम की तैयारी कर रहे है सो साथ ही आते जाते है उसके हरिद्वार जाने से आज मुझे अकेले जाना पड रहा है।तभी दिमाग मे रात वाला पुरा सीन घुम गया। बिना किसी से बोले फटाफट घर वापिस आया और फोन देखा तो बैटरी लो का साइन आ रहा था उसको चार्जिंग लगा दिया। और सैंटर जाने के लिए तैयार हो गया तब तक आधे घंटे मे फौन भी 47% चार्ज हो गया था।
बाईक निकाली और घर से चल पडा पर आज लक्ष्य था आदिबद्री . मिनटों मे सारा प्लान तैयार हो गया । कि तू अकेला ही क्या करेगा सैटर जाकर ये ..वो... बोलकर मन को भी समझा लिया। वैसे मन तो पहले ही तैयार बैठा था। तभी गाँव से बाहर निकला ही था कि गाँव के एक ताऊ जी मिल गये बाईक रुकवाई और पीछे बैठ लिए। बोले मैं भी छछरौली ही जा रहा हूँ मुझे भी छोड दियो लो जी हो गया पंगा अब इनको कौन समझाए कि आज तो मै छछरौली जा ही नही रहा हूँ खैर अब बैठ गये मना भी नही कर सकता सौ चल पड़े सैंंटर की तरफ और कर ही क्या सकते । गाँव से 6 कि.मी. आगे लेदी कस्बा आया जहाँ से आदिबद्री की तरफ सडक जाती है पर चाहते हुए भी उधर न जा सका।ताऊ जी को छछरौली छोड सैंटर की तरफ बाईक मोड ली। छछरौली एक छोटा शहर है जो एन एच 907 (पाँवटा साहिब-यमुनानगर) पर है सैटर पर पहुंचा पर पता नही क्यों सैंटर पर बिना रुके यूहीं आगे निकल गया । अब बाईक का रुख था बिलासपुर की और दुरी 9 कि.मी. 15 मिनट मे बाईक आदिबद्री जाने वाली सडक पर फर्राटे भर रही थी
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बिलासपुर मे लगा बोर्ड |
बिलासपुर से आगे सडक पर काम चल रहा था स्पीड 30-40 पे आ गई बिलासपुर से 2 कि.मी. आगे है कपाल मोचन तीर्थ स्थल इसकी कहानी इतनी है कि हरियाणा में जी तीन मेले फेमस है। कुरूक्षेत्र का सुर्य ग्रहण मेला
फरीदाबाद का हस्तशिल्प मेला
यमुनानगर का कपालमोचन मेला
सो गुरुपर्व पर लगने वाले इस मेले के बारे मे विस्तार से फिर कभी बतायेंगे।
आदिबद्री के रास्ते मे सैधय , रामपुर ,बीहटा ,रणजीत आदि गाँव आते है। रणजीतपुर से कुछ पहले एक पेट्रोल पंप से 100 ₹ का तेल डलवाया। रणजीतपुर तक यमुनानगर से नियमित बस सेवा है हालांकि यमुनानगर डिपो की एक बस सीधे दिल्ली से आदिबद्री के लिए भी चलती है। रणजीत पुर से आदिबद्री की दुरी 4 कि.मी. है आगे ये सीधी सडक नाहन की और चली जाती है रास्ते मे हिमाचल परिवहन की एक बस मिली नाहन से यमुनानगर वाया रणजीतपुर, बिलासपुर। अब मैं सीधी सडक को छोडकर रणजीत से आगे मै बाएँ तरफ मुड गये ।आगे सडक काफी अच्छी बनी हुई है। सामने ही शिवालिक पहाड़ियों के दर्शन हो गये। 4 कि.मी. का ये रास्ता न तो पहाड़ों के बीच से है न हि नदी के साथ साथ न हि घाटी मे । समतल भूमि पर हल्की तराई और ऊचाई के साथ कि आप इस रास्ते की तारीफ किए बिना रह ही नही सकते। आदिबद्री स्थल शिवालिक पहाड़ियों तलहटी मे है। 300 मीटर की ऊचाई से से शिवालिक की.पहाड़ियों की शुरुआत और 200,300मीटर की सामने खडी पहाड़ियाँ। कुछ शानदार घुमावदार मोडो के बाद वन विभाग का एक बोर्ड मिला......।
सरस्वती उद्गम स्थल क्षेत्र आदिबद्री काठगढ (यमुनानगर) मे पधारने पर वन विभाग आपका हार्दिक स्वागत करता है। ...
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शानदार सडकें |
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खूबसूरत मोड |
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वन विभाग का बोर्ड |
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आदिबद्री तालाब |
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सरस्वती नदी की खोज मे -2 के लिए यहाँ क्लिक करें
जारी ....
Very beautiful story with interesting caption :)
ReplyDeleteशुक्रिया जी.
Deleteवाह बाढ़िया लेक...सीधा और सरल । मेरा हाथ भी आपकी तरह कहीं-कहीं तंग है स्पेलिंग मिस्टेक में। अगले का इंतजार। शुभकामनाएं
ReplyDeleteशुक्रिया भाई , मोबाइल से ही पोस्ट डालता हूँ स्पेलिंग मिस्टेक पर नियंत्रण की कोशिश करुगा।
DeleteVery touchy with no formalities and show off.
ReplyDeleteजी,धन्यवाद
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