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पंडित जी से जैसे ही पहाड़ की चोटी पर बने माता मन्त्रा देवी सुना तो मन पहाड़ और जगल के रास्ते उस चोटी तक जाने के लिए उछल पडा । पंडित जी से पता कि चोटी की दुरी 2 किमी है आने जानेे मे 2 घंटे का समय लगता है। मन ही मन सोचने लगा। यो पंडित तो बावला हो गया है 2 किमी. की दौड के लिए हम 6 से 7 मिनट का समय लेते थे और अब प्रक्टिस छोड रखी है फेर भी 20 मिनट मे आना जाना कर ही दूगा ये पंडित जी तो मुझे बुड्ढों से भी परे समझ रहे है लगता है सठिया गए है चलो अभी दिखाता हूँ इनको ....
दो रास्ते है ऊपर चोटी तक जाने के लिए एक जंगल से होकर ओर दुसरा पक्की सीढियां से होकर .. पक्के रास्ते के लिए रास्ता वन विभाग के बोर्ड से कुछ पहले से मुडना होता है मैने कच्चे रास्ते से जाना और पक्की सीढियों से नीचे आना तय किया
यहाँ बंदर भी ठीक-ठाक है परेशान भी करते है मैनें जब मन्त्रा देवी मंदिर के लिए चलना शुरु किया 12:30 हो गये थे। धुप की तो पुछिए ही मत... तेज बहुत तेज .. चलना शुरु किया पहले मंदिर से नीचे थोड़ी सी उतराई आती है सोम नदी को पार करना पडता है नदी मे थोड़ा थोडा पानी चल यहा था पानी के साफ होने से पडे पत्थर काफी आकर्षक लग रहे थे नदी मे कुछ दूर कुछ लोग सोना निकाल रहे थे ... खदान से नही नदी के रेत से ... पुरे महीने काम करके 10 हजार रुपये तक का ही निकल पाता हैं। नदी पार की ओर जंगल शुरु... कुछ फोटो खींचने चाहे साथ के साथ सुझाव मिला .... बैटरी लो चार्ज करे। फोन को आफ करके ऊपर मंदिर जाकर कुछ फोटो क्लिक करने के लिए बैटरी बचा ली।

नदी के उस पार ऊपर की ओर जाती पंगडंडी

जूम करिये ओर देखिए सोना निकालते मजदूर
जंगल मे चलते हुए सचमुच गजब का एहसास होता .. अब जैसे जैसे चढाई बढ रही थी गर्मी की वजह से हालत खराब हो रही थी। रास्ता तो था पर सावधानी से चलना पड रहा था जैसे -2 ऊपर की और पहुंच रहा था नीचे का खूबसूरत नजारा स्पष्ट दिखाई दे रहा था एक जगह कुछ दुर तकलीफ सीढीयां भी बनी हुई थी जो काफी पुराने समय की लग रही थी मंदिर साइन बोर्ड के द्वारा पूरे रास्ते कच्चे हो या पक्के में पीने के पानी की व्यवस्था की गई है अगर आप गलती से रास्ता भी भटक जाते हैं तो ऊपर जाने वाले पानी के पाइप के साथ-साथ चलते रहे.. आप मंदिर तक पहुंच जायेंगे बिल्कुल चोटी के पास पहुंच जाने पर कुछ ढाल थी जिस पर थोड़ा सावधानी पूर्वक चलना पड रहा था एक तरफ हरियाणा के खेतों की हरियाली उधर हिमाचल की तरफ देखने पर घने जंगल और सिर्फ पहाड़ ही दिखाई दे रहे थे। पहाड़ों के बीच में एक छोटी सी घाटी में एक घर भी दिखाई दे रहा था जो कि काफी दूर था मन तो कर रहा था कि जंगल में घूमता घूमता उस घर तक जाऊं पर जंगल जितना खूबसूरत होता है उतना डरावना भी और मेरी हालत धूप की वजह से पहले ही खराब हो गई थी अब पंडित जी की कही बात याद आ रही थी वह सच बोल रहे थे 2 घंटे लगते ही है और उससे भी ज्यादा... कुछ फोटोस क्लिक की ऊपर से बहुत ही खूबसूरत व्यु आ रहा था .. साथ मे नीचे दिखता आदिबद्री, मंदिर, सोम नदी, काफी अच्छी लग रही थी

सोम नदी


मंदिर तक जाने के कच्चा रास्ते कुछ इस तरह के है

पुरानी सीढियां

ढलान पर उपर जाती पगडण्डी

एक फोटो हमार भी😂
एक 1 घंटे और उस से भी अधिक समय की चढ़ाई के बाद मैं आखिरकार मंदिर पहुंच गया पूरे रास्ते में एक भी पर्यटक नहीं मिला और जाते ही मंदिर में घंटी बजा दी .. तभी कुछ देर बाद पास वाले कमरे से पंडितजी बाहर निकले और मंदिर के दर्शन करवाए ऊपर का वातावरण खुशनुमा था वहाँ एक गजब की शांति थी हवा भी चल रही थी मन ही मन मैं सोच रहा था कि जंगल में घूमता रहूं घुमता रहूं और इस पार से उस पार तक कोई तो सड़क मिलेगी वहां तक जाऊ.... पर जंगल मे ऐसे जाना मुर्खतापूर्ण बात होती ...मंदिर में दर्शन करने की बाद कुछ देर वही टहलता रहा अब नीचे की ओर चलना था पक्की बनी सीढियों की ओर से....
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हरियाणा की ओर देखने पर गिरीपाद मैदान |
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हिमाचल की ओर देखने पर नजारा |

नीचे का नजारा

मंदिर परिसर

मंदिर की कथा
मैं आपको भी यहीं कहूंगा. कि दोनो रास्ते इस्तेमाल करने चाहिए.. उतराई के लिए सीढियां. सही रहती है सीढिय़ों की ओर से ऊपर चढने पर थोड़ी परेशानी होती है। चढाई जंगल के रास्ते सही रहती है।
अब मुझे सीढिय़ों की तरफ से नीचे उतरना था। ज्यादा समय नही लगा ..उतराई मे इक्का दुक्का यात्री मिले अब तक भुख भी लगने लगी थी । नीचे लौटते समय एक अलग तरह के छोटे पौधे मिले। इनके पीछे एक अजीब तरह का पदार्थ लगा हुआ था। इस पौधे को बाजू या हाथ पर दबाने से इसके पीछे की तरफ लगा सिल्वर रग का पदार्थ बाजू पर लग जाता है और सुंदर आकृति बाजू पर बन जाती है। नीचे उतरते ही फोन भी बंद हो गया था। साथ ही एक पुरातात्विक बोध स्थल के पुरावशेष दिखे।। बुद्ध की मुर्ति भी थी अब फिर से सोम नदी को पार करके केदारनाथ शिव मंदिर मे जा पहुंचा । यहाँ पर ठीकठाक भीड थी लोग सावन मे शिवलिंग को स्नान करा के पुण्य कमाते है पता नही क्या हुआ मैं मदिंर के बिल्कुल पास तक गया और वही से बिना दर्शन करे ही लोट आया मदिंर के बाहर निकाली चप्पल भी भुल गया । काफी दुर जाकर ध्यान आया कि चप्पलें पहना ही भूल गया ..... पता नही उस समय क्या हुआ था शायद भोले बाबा की आज्ञा नही थी कि मैं दर्शन करु..
सोम नदी पर बने पुल से पार खडी बाईक उठाई और इस शानदार जगह की यादें साथ लिये वापिस हो गया। चूंकि भुख लग रही थी तो पास मे ही एक दुकान से कोल्ड ड्रिंक और मठ्ठीयाँ खाई । दुकान के मालिक एक ताऊ जी थे उन्होंने बताया कि कपाल मोचन मेले के साथ ही यहां भी मेला लगता है तब यहाँ और भी दुकानें लगती है नही तो कम ही ग्राहक आते है। और इस दुकान का ठेका उन्होंने ले रखा है मेले के अलावा सिर्फ यहाँ एकमात्र दुकान उनकी है।........ पेट पूजा करके बाईक स्टार्ट की और घर की तरफ चल पडा।
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नीचे सीढियों की ओर जाता रास्ता |
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सीढियां और नीचे दिखता सरस्वती तालाब |


इसका नाम बतायेगा कोई????....
मेरा यात्रा खर्च
पेट्रोल -100 ₹
प्रसाद -10₹
कोल्ड ड्रिंक-50₹
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160
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कैसे पहुंचे :।
यमुनानगर से बिलासपुर-22किमी
बिलासपुर से रणजीतपुर-16 किमी
रणजीतपुर से आदिबद्री-3.3किमी
यमुनानगर से रणजीतपुर तक बस सेवा सुबह 7 से चालू हो जाती है।आगे आदिबद्री तक आटो भी मिल जाते है।
कब जायें: साल भर किसी भी समय जाया जा सकता है। वीकेंड और संडे के लिए परफेक्ट जगह है।बाहर की तरफ से आने वालो के लिए होटल यमुनानगर मे ही मिलेंगे या एकाध बिलासपुर मे .....
यात्रा समाप्त
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Ye wala post ab tak Sabse acha tha purely defined everything !
ReplyDeleteDhanywad g
DeleteBhot ache sae bataya h. Etne ache sae shayad hae bataya ho.☺☺🙂
ReplyDeleteThanks
DeleteBhoot ache sai describe kia hua h...nd its really interesting 🙂🙂
ReplyDeleteThanks g for more interesting post uodates like my fb page
Deleteयात्रा विवरण शानदार रहा है
ReplyDeleteपत्तो के पीछे लगा हुआ पदार्थ सफेद मिस्सी होती है जो एक कवक है
धन्यवाद जी....
Deleteपंडित की बात सही निकली।
ReplyDeleteदो घंटे लग ही गये।
बढिया यात्रा।
धन्यवाद ,संदीप भाई साहब
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद, सचिन जी
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