Monday, 25 December 2017

संडे घुमक्कडी- बौद्ध स्तूप चनेटी और बीरबल का रंगमहल




संडे घुमक्कडी

यात्रा दिनांक-24-12-2017

आज साल 2017 का सेकिंड लास्ट रविवार है आज से मेरी बी० ए० अंतिम वर्ष की एक हफ्ते की क्लासें भी शुरु हो रही है ये साल के अंतिम सप्ताह मे लगती है  आज जाकर सिर्फ रजिस्ट्रेशन ही कराना था दिन में 3 बजे तक कभी भी जाओ और रजिस्ट्रेशन करा आओ । मनदीप को फ़ोन लगाया । भाई तू जायेगा आज यमुनानगर ---हाँ

मै भी चलूँगा क्लास है आज से
--- चल आजा 
मनदीप दोस्त है गांव का ही हैं। यमुनानगर के हॉस्पिटल में लैब असिस्टेन्ट है। संडे को उसे आना जाना ही करना होता है सोचा उसी के साथ जाकर जल्दी वापिस आ जाऊँगा। 
हॉस्पिटल जाकर मनदीप ने अपना काम खत्म किया और फिर वहाँ से हम सीधे डी० ए० गर्ल्स कॉलेज की और चल दिये । 24 दिसंबर से 31 दिसंबर तक वही क्लासें हैं कॉलेज के गेट पर गया भीड़ ही भीड़... पता लगा आज की पी०सी०पी० कैंसिल कर दी गई है  यहाँ कॉलेज में आज हरियाणा अध्यापक पात्रता परीक्षा का एग्जाम हैं। 
अब क्या कर सकते हैं चल भाई डॉक्टर घर चलते है कल आएंगे।... 
जल्दी ही हम यमुनानगर पोंटा-सहिब नेशनल हाईवे पर आ गए ..बाइक का रुख गांव की और कर दिया बुडीया चौक से आगे बोर्ड लगा था 
 बौद्ध स्तूप चनेटी
 2.1 कि०मी०
पहले भी आते जाते इस बोर्ड पर काफी बार ध्यान गया है । पर कभी उधर नही गया। तभी डॉक्टर बोल पडा- ओये तू बोल राहा था स्तूप देखने को चल चलते है वैसे भी गांव जाकर भी खाली ही बैठाना है । 
नेकी और पूछ पूछ 
चल चल इधर ही मोड़ ले 
10 मिनट में ही पहुँच गए
 स्तूप बिलकुल गांव के अंतिम छोर पर है । 

स्तूप के बारे में 

स्तूप को मौर्य कालीन बताया जाता है यह लगभग 2300 साल पुराना हैं  राजा अशोक ने इसे बनाया था ये उत्तर भारत का अब तक खोजा गया सबसे बड़ा स्तूप है। भारत में आकार में सांची का स्तूप ही इससे बड़ा बताया गया है हेनसांग ने भी चनेटी के स्तूप के बारे में अपनी किताब में लिखा है 
साल 2011 में कुछ विदेशी बौद्ध  भिक्षुओं यहाँ आये थे  तब ये स्तूप काफी ख़स्ताहाल में था। गांव तक आने वाली सड़क भी टूटी पड़ी थी । और स्तूप के आस पास भी काफी गंदगी और घास उगी हुई थी। उन्होंने स्थानीय प्रशासन से शिकायत की उसके बाद जिला प्रशासन ने यहाँ काफी काम करवाया है। स्तूप बाकी स्तूपों की तरह ही गोलाकार बना हुआ है चारों और मंदिर टाइप कुछ बना हुआ है शायद पूजा पाठ के लिए होगा अब यहाँ सांची के स्तंभ की तर्ज का एक स्तंभ भी लगाया गया है । जिस तरह से इसका इतिहास है उसके ऐवज में इसको उतनी प्रसिद्धि नहीं मिल पायी है। अब पर्यटक आने लगे है और यमुनानगर के हर एक चौक पर भी इसकी दुरी को दर्शाते बोर्ड लगाये गए है। स्तूप के ऊपर चढ़ना मना है । पर हम चढ़ गये। क्या पता कुछ दिनों में मौका मिले ना मिले ये प्रसिद्ध तो होने लग गया है ज्यादा पर्यटक आएंगे और स्तूप की सुरक्षा भी देखनी होगी तब क्या पता तब स्तूप को दूर दूर से दिखाया जाने लगे सो हमने तो मन की कर ली। स्तूप के ऊपर भी एक छोटा सा गुफा जैसा कुछ था ऊपर चढने की एक वजह ये भी थी मै वहाँ तक गया  पर फिर भी समझ में नहीं आया की ये है क्या..?? शायद पूजा पाठ के लिय हो  ये भी ... 
स्तूपों में बुद्ध के अवशेष रखे गये थे क्या पता यहाँ भी बुद्ध के अवशेष रखे हो पर इतना तो पक्का है मौर्य काल में ये बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था अब यहाँ लाइट पीने के पानी आदि का भी इंजाम करा दिया गया है और इसके संरक्षण को लेकर भी काफी प्रयास किये जा रहे है 

 बाइक उठाकर घर की और चलने ही लगे थे कि याद आया कि यहाँ तक आये है जाते जाते आसपास के भी स्मारक देख लेने चाहिए जिनका मुझे पता तो था पर मैं वह गया कभी नहीं

एक गांव है सुंध यही चनेटी के पास ही है। वहाँ से बहुत पुरातात्विक महत्व की वस्तुएं मिली है पर तभी दिमाख ने यू टर्न मारा 
सुंध का सब भूल गया 
चल-बे-डॉक्टर बुडीया चलते है वहाँ राजा का किला देखते है और बीरबल का रंग महल भी है 
बाइक सीधा ही लेले पास ही है बुडीया यहाँ से .

सबसे पहले हम पहुचें किले के पास
मेन दरवाजा बंद रहता है तो घूमकर पिछले दरवाजे पर जाना पडा। वो गेट भी बंद था पास में कुछ बचे खेल रहे थे उनसे पूछा- किले में जाना है 
बोला नहीं जा सकते 
मैनें पूछा-क्यों???
बोलते - जो किले में  रहते है ना वो नहीं जाने देते 
किले में कोई रहता भी है ???
----हाँ
कौन-2 रहते है??
= रानी की पोत्री और उसके नौकर का परिवार
रानी की पोत्री सुनते ही दिल की घंटी बड़ी जोर से बजी .. डॉक्टर का तो पता नहीं पर मेरे की जरूर बजी

पोत्री मतलब जवान होगी, सुंदर भी होगी शायद मेरी उम्र की हो। यही दिमाख में आया पर साथ के साथ चला भी गया 
-रानी की पोत्री बूढी हो चुकी है  
ये तो धोखा है अगर बूढी है तो उसको पोत्री क्यों बोल रहे हो बूढी बोलो ना

फिर सोचा अगर उसकी पोत्री की उम्र 60 साल से ऊपर हुई तब भी अपनी दादी की तो पोत्री ही रहेगी ना 
 सही भी हैं।

=और भैया अंदर कुत्ता भी है बड़ा सा अगर आप ऐसे जाओगे तो काट खायेगा और वो उसे हमेशा खुला ही रखते है 

बेशक कितनी भी डीयू पी लो डर लगता ही है नहीँ नहीँ कुत्तों से नहीं जी -बाद में लगने वालो टीकों से 
सुना है कई लगते है और वो भी नाभि में 
 मै और डॉक्टर गेट की  तरफ देख रहे थे कोई गेटमेन या रानी का नौकर कोई तो आये और उससे हम अंदर जाने की बात कर सकते पर कोई नहीं दिखा मन ही मन सोच लिया था ऐसे तो बिलकुल भी अंदर नहीं जाऊँगा
गेट पर कोई नहीं आया 
चल भाई डॉक्टर चलते है फिर कभी आएंगे किला देखने पास ही है कौन सा दूर है  
चल तुझे बीरबल का रंग महल दिखता हूँ 
ये भी यही बुडीया में है 
 बुडीया- खारवन रोड पर सड़क से मुश्किल से 5 किल्ला दूर होगा मतलब की 150 मीटर के आसपास ... सड़क से ही दिख जाता हैं
 यार डॉक्टर- वहाँ तक जाने का रास्ता तो है नहीं 
-चल खेत से ही होकर चलते  है या रहने ही देते है फिर कभी देख लेंगे 
नहीं यार चल देख ही लेते है
  गूगल करके देखा तो एक कच्चा रास्ता था आगे से मुड़कर 
 सीधे वही जा  रहा है वही चलकर बाइक रोकते है यहाँ रोड में नहीं खड़ी करेंगे
    बीरबल का रंगमहल
रंगमहल के सामने जाकर बाइक रोक थी चारो तरफ झाड़िया ही झाड़ियां उगी हुई थी और 2 मंज़िल में से ग्राउंड फ़्लोर तो झाड़ियों ने ही ढक रखा था अंदर जाने का रास्ता नहीं दिखा 
इधर उधर घूमे तो अंदर जाने का रास्ता मिल गया अंदर की हालत भी ख़राब है। झर्झर हो चूका ये रंगमहल अपने अंतिम दिन गिन रहा है।
ग्राउंड फ्लोर पे 3×3 कमरे बने हुए है 5 नंबर मतलब बीच के कमरे की छत टूट चुकी है बाकी भी सभी में दरारें आ रही है कही कही पुराणी नक्काशी की हुई अब भी है ज्यादातर प्लास्टर टूट चुका है दीवारों पर यहाँ वहाँ अपशब्द लिखे हुए थे नाम भी काफी लिखे हुए हैं लव यू ये 
लव यू वो
पहले फ्लोर तक जाने के लिए सीढ़ियां है टूटी हुई है पर चढ़ा जा सकता है
यहाँ की हालत भी ग्राउंड फ्लोर जैसी ही है। छत तक भी सीढ़ियां जाती है पर वहाँ जाकर आपको छत दिखाई नहीं देगी घास और झाड़ियां उगी हुई है। एक और बात इसमें कही भी कोई भी चोखट(दरवाजा) नहीं लगी हुई है आप किसी भी दिशा से इसको देख ले आपको ये एक सामान सा ही प्रतीत होगा
बेजोड़ नमूना है पर सरकार ने आज तक इसको और कोई ध्यान नहीं दिया है तभी से आज यह मरणासन अवस्था में है इसके बारे में स्थानीय कहानियां भी है कि भूत प्रेतों और जिन्नो ने इसे रात रात में बनाकर तैयार कर दिया था और इसको पूरा होने से पहले ही सुबह हो गई चुंकि भूत-प्रेत सिर्फ रात मे ही सक्रिया होते है तो सुबह होते ही वो इसको छोड़कर चले गये पर मुझे ये एक कहानी ही लगी दूसरी कहानी ये है कि इसको बीरबल के किसी दरबारी ने बनाया था इसमें कुछ सचाई जान पड़ती है 
जो भी वो पर सरकार को इन एतिहासिक इमारतों को की देख रेख करनी चाहिए ताकि पर्यटन को बढावा मिले। 
चल डाक्टर घर नही जाना क्या...??
यही भूतो के साथ रहने का इरादा है के.......

कैसे पहुचें : 
बुडीया चौक तक यमुनानगर से पौंटा साहिब या छछरौली जाने वाली बस आपको उतार देगी वहाँ से आपको  बुडीया के लिए ऑटो मिल जायेगा। निजी वाहन से जाये तो सबसे अच्छा है। या ऑटो कर लें तब दोनों जगह धूमा जा सकता है। 


कब जायें : 12 के 18 कभी भी जा सकते है।

धन्यवाद

समाप्त....



चारो तरफ इसी तरह का पूजा गृह जैसा कुछ
बने हुए हैं।











स्तंभ जो बाहर से मंगवाया गया है।

चनेटी स्तूप 

बीरबल का रंगमहल

प्रवेश द्वार सामने दिख रहा है।


कभी भी गिर सकती है।

टूटी छत



ये छत है जी 


छत

ऊपर तक आने की सीढीयां

रंगमहल मे पुरानी कलाकृति 

















आजा डाक्टर नीचे घर भी जाना हैं।







9 comments:

  1. आज विस्तार से लिखा लेख पढकर व्हाट्सएप ग्रुप के फोटो का मामला समझ आया है।
    घूमते रहिये, ऐसी ऐसी अनछुई जगहों को दिखाते रहे।

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    1. जी, शुक्रिया संदीप भाई

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  2. शानदार वर्णन। ऐसे अनसुने और अनजाने जगहों के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगता है।

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  3. Very interesting ! Maza agya pdhke.keep it up ladke !!!!

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  4. Very immpresive blogger. Jis jagh kae bare mae serf suna tha vo aaj ese read kar esa lagta h dekh bhe le ho .

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