Monday, 16 October 2017

रेणुका जी झील और चिडियाघर




5 अप्रैल 2017

9 बज गये  थे। रास्ते मे ही भूख लगने लगी थी पर रेणुका जी पहुँच के सारी थकान और भूख गायब हो गई ।मंदिर के बाहर बनी फ्री पार्किग मे बाईक रोक दी । मंदिर के बिल्कुल सामने परशुराम तालाब है तब इसमे न के बराबर पानी था और इसमे से गाद निकलवाकर साफ सफाई की जा रही थी इसका जल स्रोत रेणुका झील है रेणुका झील से यह ताल जुडा हुआ है।  रेणुका झील का इतिहास ....

भगवान परशुराम विष्णुजी के छटवे अवतार थे । परशुराम जी की जन्मभूमि यहाँ से 7 किमी आगे जमू मे है जहाँ चोटी पर परशुराम जी का मदिंर बना हुआ है। तो कहानी कुछ इस तरह से है भगवान परशुराम का जन्म भृगुवंश मे हुआ था । इस वंश मे महर्षि ऋचीक और सत्यावती के संसर्ग से जन्मे जगदग्नि का विवाह इक्ष्वाकु राजकुमारी रेणुका के साथ हुआ। जमदग्नि से रेणुका को 5 पुत्रो की प्राप्ति हुई । सबसे छोटे पुत्र जिनका नाम राम था ने महादेव की घोर तपस्या की इससे प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें अमोध अस्त्र 'परशु' प्रदान किया तब वे ही राम परशुराम कहलाये।

परशुराम के पिता जमदग्नि सप्तऋषियों मे से एक थे व माता रेणुका जी भी परिवारिक कार्यो के साथ आध्यात्मिक कर्म कार्य मे निपुण थी  उनका आश्रम जमू गाँव के ऊचे 'तपे का टीला' नामक स्थान पर हुआ करता था। व नीचे तलहटी पर राम सरोवर था जहाँ से माता रेणुका पुजा-अर्चना के लिए एक मिट्टी के कच्चे घडे मे पानी भर कर ले जाती है रेणुका जी की दैवयी शक्ति के कारण कच्चे घडा न तो गलता था और साथ ही एक बूंद भी जल नही रसता था एक दिन रेणुका जी नीचे पानी लेने गई तो उन्होंने वहाँ पर गंधर्व राजा चित्रकूट को अपनी पत्नी सहित जल मे क्रम-कीडा मे लिप्त पाया । क्षण भर के लिए उनके मन मे भी इस तरह का विचार आया परतुं शीघ्र ही उन्होंने अपने मन पर काबू पा लिया औय अपने दैनिक कार्यों हेतू नदी मे स्नान करने उतर गयी परंतु वे विचार उनके मन से पुरी तरह से ना जा सके। और इसी उधेड़बुन मे उन्हेंं देरी हो गई और जब तक वे आश्रम पहुंची तब तक घडा रिस कर खाली हो गया ।तब जमदग्नि ने अपनी शक्ति से इसका कारण पता कर लिया। वे क्रोध से आगबबूला हो उठे और तभी उन्होंने अपने पुत्रों से उनकी माँ की हत्या करने का आदेश दिया परंतु चारो बडे पुत्रों ने मातृ हत्या के पाप से बचने के लिए उन्हें साफ मना कर दिया फिर जमदग्नि ने यही आदेश परशुराम को दिया। परशुराम अपने पिता के तपोबल से परिचित थे अतः कठोर हृदय के साथ उन्होंने माता रेणुका का सिर धड से अलग कर दिया बचाने आये चारो भाईयों की भी हत्या कर दी । जब जमदग्नि का गुस्सा शांत हुआ तब उन्होंने परशुराम को दो वर मांगने को कहा तब परशुराम ने अपनी माता और भाईयों को जीवित करने के साथ उनको मृत्यु संबंधी सभी यादें भुल जाने का वर माँगा तब जमदग्नि ने अपने तपोबल से सभी को जीवित कर दिया । परंतु परशुराम मातृ हत्या की आत्मग्लानि से दुखी थे और पशचाताप करने वो पुष्कर चले गये और साल मे एक दिन आकर मां से मिलने का वादा करके वो चले गये।

कहते है कि जब जब इस धरती पर पाप बढा है तब तब भगवान ने किसी न किसी रुप मे प्रकट होकर दानवों का विनाश कर धरती को पाप मुक्त किया है । उस समय मे हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य अर्जुन ने कठोर जप तप करके हजार भुजाएं और युद्ध मे विजय होने का वर प्राप्त किया हुआ था । एक दिन वह घुमते-2 जमदग्नि के आश्रम  पहुंचा वहाँ ऋषि जमदग्नि ने अपनी तेजस्वी गाय ' कामधेनु ' की सहायता से कार्तवीर्य को दल सहित  बहुत स्वादिष्ट भोजन कराया। कार्तवीर्य  को जब कामधेनु के इस प्रताप का पता चला तो वह उसे बल पुर्वक अपने राज्य ले गया । जब वापिस लौटने पर परशुराम को ये सब पता चला तो उन्होंने कार्तवीर्य के राज्य पर आक्रमण कर उनका वध कर दिया और कामधेनु को वापिस ले आये। जब जमदग्नि ने परशु पर खून लगा देखा तो उन्होंने परशुराम को फटकार लगाई।

 तब परशुराम बद्रिका आश्रम मे तप करने चले जाते है और ऋषि जमदग्नि भी अपने आश्रम मे घ्यानमग्न हो जाते है।  तब राजा कार्तवीर्य के पुत्रों ने बदला लेने की इच्छा से आश्रम पर आक्रमण कर ऋषि जमदग्नि की हत्या कर उनका शीश साथ ले गये।  माता रेणुका विलाप करते  हुए परशुराम को याद कर रही थी जब परशुराम को इस सारे कृत्य का अभास हुआ वे क्रोध से आग बबूला हो उठे व सीधे आश्रम पहुंचे। तब माता रेणुका पति के शव के पास बैठी रो रही तभी माता रेणुका ने अपने मनोःभाव बतलाते हुए इक्कीस बार अपनी छाती को पीटा और तभी भगवान परशुराम ने पापी क्षत्रियों का इक्कीस बार धरती से नाश करने की सौगंध खाई और कार्तवीर्य के राज्य माहिष्मती पर पुनः आक्रमण कर उसके पुत्रों का वध करके पिता का कटा सर ले कर आश्रम पहुंचे और फिर उनका अंतिम सस्कार किया माता रेणुका ने पतिव्रता पत्नी का धर्म निभाते हुए आश्रम की तलहटी मे स्थित राम कुंड सरोवर मे जलमग्न हो गई।तब इस सरोवर की आकृति स्त्री स्वरूप मे बदल गई व इसको ही अब रेणुका माता झील कहा जाता है।

माता रेणुका के जलमग्न होने के बाद परशुराम जी ने माता को पुर्नजीवित होने हेतु उनसें आग्रह किया तब माता रेणुका ने उन्हें वचन दिया कि साल मे एक दिन वो अपने पुत्र से मिलने झील से बाहर आया करेंगी और आज भी हर साल कार्तिक मास की एकादशी को भगवान परशुराम अपने निवास जमू के पुरातन मदिंर से चाँदी की पालकी मे बिठाकर रेणुका झील तक लाया जाता है। इस अवसर पर हिमाचल सरकार द्वारा  मेले का आयोजन किया जाता है


ये तो था रेणुका झील का इतिहास और अब आपको  ले चलते है माता रेणुका झील और रेणुका जी जू के भ्रमण पर ।

9:10 बजे मंदिर परिसर मे दाखिल हुये । मंदिर के ठीक सामने ही परशुराम ताल बना हुआ है जिसके बारे में मैं आपको ऊपर बता चुका हूँ। फोटो लिए और वहाँ से निकल लिए।  और दाएँ और कुछ दूरी पर  रेणुका झील। मदिंर परिसर मे माता रेणुका , दशावतारों का मंदिर सहित कई मंदिर बने हुये है और परिसर के बीच मे है उस पर्वत की चोटी का भाग जिस पर बैठ कर भगवान परशुराम ने वर्षों तक तपस्या की थी।अब यह मात्रः एक फुट ही ऊँची है पर कभी यह काफी विशाल रही होगी। खैर फोटो लिये और झील की तरफ निकल गये अरे! ये क्या चिड़ियाघर तो झील के दायें और है पर ये मंदिर के पीछे क्या दिख रहा है जाकर देखा तो बत्तखों और शतरगमुर्ग नही! नही! ऐमू या शाशायद शतुरमुर्ग ही होगा । झील के चारो तरफ ही शेर , चीता बिल्ली , भालू, नील गाये, हिरण, बारहसिंगा  जंगली मुर्गौ के बाडे बने हुए है।

 झील की तरफ चलने पर एक जगह रामबावडी बनी हुई है। इसमे पीने का साफ स्वच्छ पानी था पता न पीने लायक था या नही पर था पर तल मे पडे कंकर पत्थर साफ दिखाई पड रहे थे और पेडों के पत्ते भी । झील मे बोटिंग की भी सुविधा है पर सारे दिन मे ईक्का दुक्का ही ग्राहक आते हैं पर मेले के समय इनका पीक सीजन होता है तब तो इनकी अच्छी कमाई होती है।  झील में मछलियों की भरमार है कुछ पर्यटक जो वहाँ थे उन्हें खाने के लिए स्नैक्स पानी मे डाल रहे थे। हमने भी स्नैक्स (रस) के दो पैकेट लिए और जैसे ही मैं और अनिकेत  स्नैक्स को पानी में फेंकने लगे तो वहां सैकड़ों मछलियां इकठ्ठी हो गई तभी मुझे पानी में एक बड़ी और काली सी आकृति दिखाई दे जब वह पानी से बाहर आ गया तब जाकर पता चला यह तो एक बड़ा कछुआ है बड़ा कछुआ । मेरे और साहिल मैं उसकी उम्र को लेकर बहस छिड गई ।... सौ साल का होगा ...
नहीं नहीं डेढ़ सौ का .....
200 का भी हो सकता है 
चल छोड़ यार कितनी भी उम्र के हो है तो बुजुर्ग ही ।।। कछुआ पानी से बिल्कुल बाहर आ गया था और तरह-तरह के पोज़ देकर फोटो भी खिंचवा रहा था हमने भी उसके जमकर फोटो लिए । झील के बाएं तरफ भी काफी मंदिर बने हुए हैं और  कईयो पर कार्य जारी है 

अरे हां यह तो मैं आपको बताना भूल ही गया कि यह झील हिमाचल की सबसे बड़ी झील है समुन्द्र तल से 672 मीटर की ऊँचाई पर स्थित 3214 मीटर की परिधि के साथ रेणुका झील हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी झील के रूप में जानी जाती है। झील का पुरा चक्कर लगाने पर ही मदिंर की पूजा संपन्न मानी जाती है वो भी पैदल  और इसके साथ साथ आप झील के किनारे बने बाडों में वन्य जीवों को भी देख सकते हैं जू के साथ साथ हमारी भी पूजा संपन्न हो गई वैसे झील की परिक्रमा करने के लिए मंदिर प्रशासन व वन्यजीव प्रशासन ने गाड़ी भी लगाई हुई है। कुछ तय शुल्क देकर आप इसकी सवारी कर सकते है। जो झील की परिक्रमा करने के साथ साथ आपको वन्य जीवों को भी दिखाती है और पैदल तो  घुमा जा ही सकता है चूंकि हम दोपहर में घूम रहे थे धूप भी अच्छी खासी थी खूब पसीने छूट रहे थे। तो ज्यादातर जानवर भी अपने बाड़ों में दुबके पड़े थे। झील की परिक्रमा शुरू करने से पहले हमने कोल्ड ड्रिंक और कुछ चिप्स के पैकेट ले लिए थे जू भ्रमण के रास्ते में भी कैंटीन बनी हुई है । हमने उसी कैंटीन के सामने बैठकर अपनी कोल्ड ड्रिंक्स और चिप्स निपटाये। और आगे चल दिए। चीता बिल्ली, चीता,भालू सुस्त पडे थे हिरण, बारहसिंगा, कस्तुरी हिरण , लाल जंगली मुर्गे नील गाय भी अपने बाड़ों में सुस्ता रहे थे। 
हमारे वहाँ काफी शोर-गुल करने के बाद भी वो नही उठे तब हम वहां से आगे चल पड़े हमारे वहाँ रहते हुए दिल्ली का एक परिवार भी वहाँ आ गया।बात-चीत हुई और दोनों का एक ही सवाल ???  शेर का बाड़ा मिला क्या ??? 
और जवाब भी एक ... नहीं।
दोनों मुस्कराये और अपने -2 रास्ते आगे बढ़ गये।
जू की एंट्री पर बड़ा सा बोर्ड लगा है। लायन सफारी .. पर ,जी इसके बहकावे में ना आये। यहां के शेर महाराज 2015 में ही स्वर्गवासी हो गये थे ताजा सुत्रो (अप्रैल 2017 के) से पता चला है कि इन्होंने (रेणुका जू) कलकत्ता जू से व्हाइट टाइगर खरीदा है जिसके लिए नया बाड़ा बनाया जारी रहा है। और जल्द ही टाइगर सफारी फिर से शुरु होगी और क्या पता आपको शेर का बाड़ा मिल जाये??
 रास्ते में कोल्ड ड्रिंक पी । पेट में कुछ आसरा हुआ था अब फिर से भुख लगने लगी थी। सो जल्दी बाहर निकल गये। हां जी, एक और बात जू में कोई टिकट नहीं लगता। फ्री.. फ्री... फ्री....
 12:00 बज गए थे धूप भी काफी तेज थी। जल्दी ही हम घर के लिए वापस चल पड़े। उसी सडक से वापिस गये जिधर से गये थे। छोटी और एक दिनी यात्राओं में यही होता है। जिधर से जाओ ज्यादातर समभावना यही रहती है कि उधर से ही वापिस आया जाये।
हिमाचल के इस इलाके की खूबसूरती अन्य इलाकों से कम नहीं है फिर भी यहां कम ही पर्यटक आते हैं पर्यटक नहीं जी घुमक्कड़ , पर्यटक तो सारे शिमला -मनाली निकल जाते हैं। 
अगर आपको भी घुमाना है रेणुका जी, तो बिल्कुल सही समय है 30-10-2017 से मेला शुरु हो चुका हैं जो 3-11-2017 तक है तो निकल पड़िए जल्द.....


उस पर्वत की चोटी का भाग जिस पर बैठ कर भगवान परशुराम ने वर्षों तक तपस्या की थी।




देखना क्या है???


भालू अंदर है






साथ ही घुमिए 
 पांवटा साहिब गुरुद्वारा
 कालेश्वर महादेव मठ
 हथिनी कुंड बैराज
  असंध बैराज
 कालेसर वन्यजीव अभ्यारण्य।


समाप्त ।।।
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