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घर से 9 बजे निकला था और अब 11 बज रहे थे। वन विभाग के बोर्ड के पास ही बाईक रोक दी। और वही से नीचे दिख रहे तालाब की फोटो खींचने लगा तालाब ऊपर से देखने पर काफी सुंदर दिख रहा था पक्का बना हुआ था तालाब तक नीचे पक्की सडक गई हुई है। बाईक स्टार्ट की और तालाब की ओर चल पडा। नीचे तराई की तरफ जाते ही सबसे पहले दर्शन हुए सरस्वती उद्गम स्थल यानि सरस्वती कुंड के जहाँ से नदी का उद्गम हो रहा है। बाईक रोक कर साईड मे लगा दी। पीछे जहाँ वन विभाग का बोर्ड है वही से ही जंगल शुरु हो जाता है। ओर पहाड़ भी
घर से 9 बजे निकला था और अब 11 बज रहे थे। वन विभाग के बोर्ड के पास ही बाईक रोक दी। और वही से नीचे दिख रहे तालाब की फोटो खींचने लगा तालाब ऊपर से देखने पर काफी सुंदर दिख रहा था पक्का बना हुआ था तालाब तक नीचे पक्की सडक गई हुई है। बाईक स्टार्ट की और तालाब की ओर चल पडा। नीचे तराई की तरफ जाते ही सबसे पहले दर्शन हुए सरस्वती उद्गम स्थल यानि सरस्वती कुंड के जहाँ से नदी का उद्गम हो रहा है। बाईक रोक कर साईड मे लगा दी। पीछे जहाँ वन विभाग का बोर्ड है वही से ही जंगल शुरु हो जाता है। ओर पहाड़ भी
सरस्वती उद्गम स्थल
कुंड बिल्कुल सडक किनारे पहाडी के अंदर सी को है। आगे लोहे का जाल लगा हुआ है। उसी मे गेट लगा रखा है उस समय कुंड पर कोई भी पर्यटक नही था। गेट खोलकर अंदर आ गया कुंड को आयत के रुप मे तीन तरफ से पहाड़ ने घेर रखा है सामने वाला हिस्सा खाली है उधर तभी लोहे का जाल और गेट लगाया हुआ है। नीचे से फर्श हो रहा है सबसे पीछे कच्चा कुंड है उसके आगे पत्थर की छोटी दीवार बनाकर गौमुख लगाया हुआ है।गौमुख से जल की बारीक सी धारा के रुप मे सरस्वती नदी प्रवाहित हो रही है। कुंड के आसपास बडी सफाई है ....... ओ तेरी की ...ये क्या पाप हो गया.. कुंड पर चप्पल पहन कर आ गया ...कहा रहता है तेरा दिमाग अंकित... तभी चुपचाप गेट के बाहर चप्पल निकाल आया.. कुंड मे गंदा सा पानी था ओर इतना छोटा कि एक छोटी कार की लंबाई-चौडाई से भी कम .. और जल स्त्रोत है पहाड़ से रिस रिस कर जो जल आ रहा है। ये ही सरस्वती नदी का उद्गम स्थल है ये यकीन नही हो रहा पर क्या पता पिछले युगों मे ये विशाल होगा .... क्या पता इसके आसपास इन शिवालिक की पहाड़ियों पे भी कभी बर्फ पडती होगी और शायद तभी सरस्वती नदी सदानीरा रहती थी। यही सोचते-सोचते मै बाहर आ गया। बाहर कुंड का विवरण देते बोर्ड थे पता चला कि सरस्वती हिमनद से निकलकर आदिबद्री से मैदानी भाग मे प्रवेश करती थी.. तो फिर ये यहाँ उद्गम क्यों बताया गया है समझ से परे है इससे के साथ गहन इतिहास जुडा है और वो माणा गाँव के पास से निकलने वाली सरस्वती शायद यही से मैदानी भाग मे प्रवेश करती हो... नीचे कोने पे लिखा था.. इसरो..नासा..।। मलतब इसरो और नासा के वैज्ञानिकों ने यहाँ खोज की है और यहाँ सरस्वती नदी के अस्तित्व को माना है एक खोजी के लिए ये खोज का विषय है अपने लिए नहीं..... अबे......... ये इस छोटी धारा का जल कहाँ जा यहा है सडक के उस तरफ देखने से पता चला कि नीचे तालाब की ओर जा रहा है। मतलब ये नीचे जो बडे से तालाब मे जो जल है सरस्वती नदी का है बाद मे किसी और से पुछने पर पता कि इस छोटे कच्चे कुंड का जल कभी नही सुखता और धारा के रुप मे सरस्वती नदी आज भी निरंतर बह रही है और गहनता से पुछने पर पता चला कि हरियाणा सरकार ने 2015-16 सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने के लिए यहाँ से कुछ दुर मुगलवाली गाँव से जमीन अधिग्रहण कर नदी की खुदाई चालु करवाई थी क्योंकि नासा और इसरो के आकडों के अनुसार सरस्वती नदी आज भी घरती के नीचे 20-25 फुट नीचे बह रही है और हरियाणा ,राजस्थान, गुजरात से बहते हुए अरब सागर मे गिरती थी तो सोचने वाला तथ्य ये है कि प्रयाग मे सरस्वती नदी कैसे पहुंची..... और अगर प्रयाग मे पहुंची तो नासा और इसरो के शोध का क्या.. सोचिए.. सोचिए ... अरे यार हम खोजी थोड़े है हम तो घुमंतू है आगे चलते है
सरस्वती नदी जलधारा के रुप में
सरस्वती कुंड
सामने ही एक साईन बोर्ड पर आगे के कुछ स्थानों की दुरियां लिखी हुई थी।
श्री सरस्वती उद्गम स्थल -0 किमी
श्री आदिबद्री नारायण मंदिर-1 किमी
श्री केदारनाथ शिव मंदिर - 1 किमी
श्री माता मन्त्रा दैवी मंदिर - 3 किमी
बाईक स्टार्ट की चल पडा और बाईक तीसरा गेयर पकडने से पहले ही रोक भी ली कारण वही सरस्वती जल से भरा तालाब .... तालाब के साथ ही पार्क बना हुआ है स्कूल के बंकबाज बच्चे बैठे हुए थे यही पार्क के साथ वन विभाग का विश्रामगृह भी है कुछ फोटो लिए और बाईक उठाकर आगे चल दिया और वही हुआ बाईक चलने से पहले रुक गई...
सामने मिला भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण का एक बोर्ड..... लिखा था
सांस्कृतिक नाभि एंव व्याख्या केंद्र
काठागढ आदिबद्री
यमुना नगर
बाईक इसी ओर मोड दी बाईक बाहर खडी कर अंदर दाखिल हो गया बाहर खुले पार्क मे ही इस क्षेत्र के आसपास की खुदाई से मिली पत्थर की मुर्तिया लगाई हुई है ओर इनका परिचय देता एक बोर्ड.... पुरे व्याख्या केंद्र मे गजब की शांति थी पर्यटक तो दुर कोई अधिकारी, सुरक्षाकर्मी तक नही था.. बाहर की मुर्तियों को देखने के बाद मै सामने बनी झोपड़ीनुमा कमरो मे दाखिल हुआ ..तीन कमरे है सभी मे उत्खनन से प्राप्त चीजें रखी हुई है सभी शीशे मे बंद थी पर इनको ऐसे छोड देना सही नही .. सुरक्षाकर्मी होने चाहिए था यहाँ... शायद हो भी पर उन्हे डयूटी पर भी होना चाहिए वरना कोई भी शरारती तत्व इस पुरात्ततविक साम्रगी को नुकसान पहुंचा सकता है यही आसपास ही सोम नदी के तट पर बोद्ध स्तूप और विहार मिला है यही आदिबद्री मे कुल तीन उत्खनन साइटें है जो तीसरी से छठी ईसवी के मध्य की है। म्यूजियम काफी अच्छा बना हुआ है और यहाँ का एंकात एकदम मन को शांति देना वाला बिल्कुल पीछे दिखते पहाड़ मौसम को खुशनुमा और शांतिमय बना देते है।
जानकारी देता एक बोर्ड
म्यूजियम के परिसर मे लगी पुरातत्व मुर्तिया
म्यूजियम देखकर आगे चलकर कुछ दुर बाईक रोक दी ये बाईक का अंतिम ठहराव है इससे आगे आपको पैदल ही जाना पडेगा। बाएँ तरफ खडा पहाड और दाएँ तरफ सोम नदी ... सीधा रास्ता सीढियों से होकर आदिबद्री नारायण मंदिर को जाता है और दाईं तरफ सोम नदी का पुल पार करके केदारनाथ शिव मंदिर की ओर जाता है मैने 10₹का प्रसाद लिया और पहले नारायण मदिंर जाकर माथा टेका पुजारी जी ने आकर मेरे प्रसाद का भोग लगया और मंदिर के बारे मे जानकारी थी साथ ही वही नासा के शोध वाली बात दोहराई।साथ ही जिस के दर्शन हुए उसे देखकर मजा आ गया ये था एक शंख.... जी हाँ ,ठीक सुना आपने शंख और वो भी भगवान श्रीकृष्ण का शंख जो वो महाभारत के युद्ध मे प्रयोग करते थे इतनी जल्दबाजी मे शंख की फोटो लेना भुल गया । तभी पंडित जी ने बताया की ऊपर भी माथा टेक आना ... मैं हैरान ... कौन सा ऊपर पंडित जी.... अरे वो मंदिर दिख रहा है ना पहाड पेःः माता मन्त्रा देवी का मंदिर है .... कितनी दुर है जी.........
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जारी.........
Lage raho beta very nice
ReplyDeleteधन्यवाद जी...
DeleteBhot acha bataya.jalde jalde post karna mujhe aage bhe padna hai.😊😊
ReplyDeleteजरुर और कमेंट के लिए धन्यवाद।।
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